हर ओर गूंजता जो ये नाद है,
अंतर्मन में छिड़ा एक संवाद है,
जो इश्वाकु क्षीणता के अपवाद हैं,
क्या पत्थर उनकी मर्यादा बता पाएंगे!
क्या पुषोत्तम राजा राम फिर आयेंगे!
जिसके लिए ना कोई छोटा था ना बड़ा,
जिसके लिए धर्म था रहना न्याय पे अड़ा,
जो सब त्याग के रहा हर वचन को खड़ा,
क्या उत्सव उन मूल्यों को सिखा पाएंगे!
क्या न्यायमूर्ति राजा राम फिर आएंगे!
जिसने सर्वजन हिताय को स्वयं से भी ऊपर रखा,
जिसके राज में बिना भेदभाव सबने एक ही सुख चखा,
जिसने हर निर्णय में जाति, वर्ग व पंथ को परे रखा,
क्या उत्तेजित लोग उस समरसता को समझ पाएंगे!
क्या परम आदर्श राजा राम फिर आएंगे!
जिसने शत्रु को भी सम्मान दिया,
जिसने किंचित भी ना अभिमान किया,
जिसने हर मुश्किल को आसान किया,
क्या भक्ति से हम वो व्यक्तित्व पा पाएंगे!
क्या रघुपति राघव राजा राम फिर आएंगे!
शार